ओमप्रकाश अश्क, कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अगर विपक्ष का पीएम फेस बनने से इनकार करती हैं, तो इससे किसे फायदा होगा। क्या वे कांग्रेस के किसी कैंडिडेट का समर्थन कर सकती हैं ? इसका तो सीधा जवाब होगा- कतई नहीं। बंगाल में अपने विरोधियों को तो वह पनपने ही नहीं देंगी। इसलिए कि बड़ी मुश्किल और मेहनत के बाद उन्हें विरोधियों को परास्त करने में कामयाबी मिली। फिलहाल पीएम पद की रेस में पांच नेताओं के नाम चर्चा में हैं। उनमें कांग्रेस की सलाह पर विपक्ष को एकजुट करने में लगे नीतीश कुमार अव्वल हैं। हालांकि अभी तक वे इससे इनकार करते रहे हैं। दूसरे नंबर पर ममता बनर्जी का नाम लिया जाता है। तीसरे तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और चौथे तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव यानी केसीआर हैं।
कांग्रेस के साथ कभी नहीं जाएंगी ममता बनर्जी
वहीं आपको बता दें कि ममता बनर्जी के लिए बंगाल में तीन दल समान रूप से दुश्मन हैं। इनमें पहली पार्टी तो सीपीएम है, जिसने कांग्रेस के दीर्घकालिक शासन के बाद तकरीबन 34 साल तक बंगाल पर राज किया। कांग्रेस छोड़ कर अपनी पार्टी टीएमसी बनाने वाली ममता कभी नहीं चाहेंगी कि वे विपक्षी एकता के नाम पर बंगाल के अपने किसी दुश्मन से हाथ मिलाएं। वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर वाम दलों का अब सफाया हो चुका है। फिर भी दुश्मन तो दुश्मन ही होता है। हाल ही में दुश्मन को छोटा समझने की सजा उन्हें मिल चुकी है। मुर्शिदाबाद जिले की सागरदीघी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वाम-कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार कांग्रेस के ब्रायन विश्वास जीत गए। यह टीएमसी की पारंपरिक सीट थी। इस क्षेत्र में मुसलमान वोटरों की संख्या ज्यादा है और मुसलमान ममता की पार्टी के समर्थक माने जाते हैं। फिर भी टीएमसी का उम्मीदवार हार गया। यानी अब भी यह संभावना साफ दिखाई देती है कि मुस्लिम वोटर अपने हित में कांग्रेस या वाम दलों के उम्मीदवार को तरजीह दे सकते हैं। इसलिए ममता कांग्रेस के साथ जाना कभी पसंद नहीं करेंगी।
केसीआर और स्टालिन से ममता को भय नहीं है
कई बार वे इस बात को दोहरा भी चुकी हैं। ममता बनर्जी को केसीआर और एमके स्टालिन के भी पीएम फेस बनने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन उनका जनाधार सिर्फ अपने राज्यों तक सीमित है। इसलिए विपक्ष के दूसरे दल भी इनमें किसी को पीएम फेस बनाने के लिए तैयार हो जाएं, इसकी संभावना कम ही दिखती है। उत्तर भारत, पूर्वी भारत और नॉर्थ ईस्ट में तो शायद सामान्य ज्ञान के कोर्स के अलावा किसी ने इनका नाम भी नहीं सुना होगा। बल्कि गोवा के अलावा ममता बनर्जी नार्थ ईस्ट के राज्यों में अपना जनाधार बनाने की जरूर कोशिश करती रही हैं।
2021 में बीजेपी ने ममता को आईना दिखा दिया
2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी का असल जलवा दिखा। ममता बनर्जी तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब तो रहीं, लेकिन बीजेपी की कामयाबी ने उन्हें बेचैन कर दिया। बीजेपी को 77 सीटों पर जीत मिली। यानी पिछले बार के मुकाबले 74 सीटों का फायदा। बीजेपी का वोट शेयर पिछली बार से 28 प्रतिशत बढ़ कर 38 प्रतिशत आंका गया। तभी से ममता अपने गढ़ बंगाल को बचाने के लिए परेशान हैं। उन्हें पीएम बनने से अधिक चिंता अपना गढ़ बचाने की है। उन्हें भय है कि जिस तरह सागरदीघी में कांग्रेस और वाम दलों ने एक होकर टीएमसी प्रत्याशी को परास्त कर दिया, अगर इसी तरह उन्होंने ममता बनर्जी के वोट आधार पर चोट कर दी तो बीजेपी की राह और आसान हो जाएगी। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर वह विपक्ष की एका तो चाहती हैं, लेकिन राज्य में उन दलों से कोई नजदीकी संबंध नहीं रखेंगी।
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