December 23, 2024

किंगफिशर, जेट एयरवेज, गो फर्स्ट… क्यों हो रही है एयरलाइंस कंपनियों की ‘क्रैश’ लैंडिंग, इनसाइड स्टोरी

नई दिल्ली: हाल ही में रिपोर्ट आई कि हवाई सफर करने वाले यात्रियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। फ्लाइट से सफर करने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। एक तरफ यात्रियों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ एक के बाद एक एयरलाइंस दिवालिया हो रहे हैं। 3 मई को किफायती एयरलाइन कंपनी गो फर्स्ट (Go First) ने अपनी सभी उड़ानों को रद्द कर दिया। कंपनी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है। हालांकि ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी भारतीय एविएशन सेक्टर में विमान कंपनियों को क्रैश लैंडिंग होती रही है।

​बुरे दौर से गुजर रहा एविएशन सेक्टर​

एविएशन सेक्टर के लिए ये वक्त ठीक नहीं है। पहले किंगफिशर एयरलाइंस (Kingfisher Airlines) और जेट एयरवेज (Jet Airways) और अब बजट एयरलाइन गो फर्स्ट (Go-First) दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुका है। हालात तो ऐसे थे कि अगर टाटा (Tata) ना आती तो एयर इंडिया (Air India) का हाल भी बेहाल हो जाता। कर्ज का बोझ और पैसों की किल्लत के चलते एक-एक कर कई एयरलाइंस अर्श से सीधा फर्श पर आ गई।

किंगफिशर एयरलाइंस कैसे हुआ बंद ?

‘किंग ऑफ गुड टाइम्स’ के नाम से मशहूर विजय माल्या ने साल 2003 में किंगफिशर की शुरुआत की थी। बियर कंपनी किंगफिशर (Kingfisher) के मालिक विजय माल्या (Vijay Mallya) ने किंगफिशर एयरलाइन की शुरुआत की। ग्लैमर और चकाचौंध वाली एयरलाइन कुछ साल तक तो ठीक चलती रही, लेकिन फिर अपने ही फैसलों के कारण बंद होने की स्थिति में पहुंच गई। कर्ज और खर्चों के बोझ के कारण एयरलाइन के ऊपर 7000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का लोन हो गया। साल 2012 में किंगफिशर एयरलाइन का फ्लाइंग लाइसेंस कैंसिल कर दिया।

जेट एयरवेज कैसे हुआ दिवालिया

जेट एयरवेज (Jet Airways) की बर्बादी की कहानी भी कुछ अलग नहीं है। किंगफिशर से आगे निकलने की होड़ में जेट एयरवेज ने एयर सहारा को खरीदा, लेकिन ये फैसला उसपर ही भारी पड़ गया। कभी आसमान का राजा बनने की चाहत रखने वाले जेट एयरवेज के लिए आसमान खत्म होता चला गया। साल 2006 में 500 मिलियन डॉलर में एयर सहारा को खरीदा, लेकिन ये डील उसकी बर्बादी की कहानी की शुरुआत थी। जेट एयरवेज वित्तीय चक्रवात में फंसता चला गया। किफायती एयरलाइंस स्पाइजेट, इंडिगो और गो फर्स्ट ने उनके लिए चुनौतियां और बढ़ा दी। प्राइस वॉर के भंवर में फंसकर अप्रैल 2019 आते आते जेट एयरवेज कंगाली की हालत में पहुंच गया।

भारत में एविएशन सेक्टर की चुनौतियां लगातार बढ़ रही है। ईस्टवेस्ट , दमानिया ,एमडीएलआर, पैरामाउंट, किंगफिशर, जेट एयरवेज बदहाली के कगार पर पहुंच गए। खराब मैनेंजटमेंट, महंगा ईंधन, डॉलर में उतार-चढ़ाव, मांग का असंतुलन, लागत और सरकारी नीतियों के कारण एयरलाइंस कंपनियों की मुश्किलें बढ़ती रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि विमान परिचालन में आने वाले खर्च का आधा हिस्सा एयर टर्बाइन ईंधन का होता है। आधी लागत ईंधन खर्च पर आती है। इसमें हो रही बढ़ोतरी एयरलाइंस की मुश्किलें बढ़ाते हैं। वहीं डॉलर के दाम में उछाल भी एयरलाइन के लिए लागत बढ़ा जाता है।

​सबसे बड़ी चुनौती​

एयरलाइंस के लिए सबसे बड़ी चुनौती मांग में उतार-चढ़ाव है। कभी टिकटों की मांग अधिक तो कभी बहुत कम हो जाती है। मांग भले कम हो, लेकिन खर्च अपनी जगह बने रहते हैं। एविएशन सेक्टर में रनिंग कॉस्ट बहुत अधिक होता है। विमान का रखरखाब भी काफी खर्चीला होता है। एयरलाइंस कंपनियों के लिए हवाई अड्डे की लागत भी बड़ी चुनौती है। इन सबके अलावा सरकारी नीतियां एविएशन इंडस्ट्रीज में बड़ा रोल निभाती है। कई बार निजी एयरलाइंस इस बारे में बोलती रही है कि सरकार उनके लिए हवाई किराए को तय करती है। उनकी वजह से विमान कंपनियों को एक निश्चित मूल्य पर टिकट बेचने के लिए बाध्य होना पड़ता है। जिसका नुकसान विमान कंपनियों को उठाना पड़ता है। लागत और कमाई में अंतर विमान कंपनियों पर बढ़ते बोझ की वजह है। इन सब कारणों से एयरलाइंस कंपनियां , जो आसमान में उड़ने की चाहत रखती है, बर्बादी की कगार पर पहुंच जाती है।